![dhaan ki kheti me sinchayi aur jal prabandhan ka mhatav](https://static.wixstatic.com/media/9f521c_ab5d1ba7ac564f74aaaf3069672e624f~mv2.webp/v1/fill/w_980,h_551,al_c,q_85,usm_0.66_1.00_0.01,enc_auto/9f521c_ab5d1ba7ac564f74aaaf3069672e624f~mv2.webp)
भारत में, धान एक मुख्य खाद्य फसल है। इसकी खेती देश के हर कोने में की जाती है। लेकिन अच्छी पैदावार के लिए सिंचाई और जल प्रबंधन सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं। आइए, धान की खेती के दौरान सिंचाई से जुड़े कुछ अहम पहलुओं को समझें।
क्या चावल हमेशा पानी में उगता है?
नहीं, चावल का बीज सीधे पानी में नहीं उगता। शुरुआती चरण में, चावल के पौधे को नमी वाले वातावरण की जरूरत होती है, लेकिन पानी में डूबा हुआ नहीं।
इसलिए, किसान खेतों में पहले बीज की रोपाई करते हैं और फिर हल्की सिंचाई करते हैं। जब पौधे थोड़े बड़े हो जाते हैं, तब धीरे-धीरे पानी का स्तर बढ़ाया जाता है।
धान को अधिक पानी की आवश्यकता क्यों होती है?
चावल के पौधे को निम्नलिखित कारणों से सिंचाई के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है:
जड़ प्रणाली: चावल के पौधे की जड़ें उथली होती हैं, जो मिट्टी की ऊपरी सतह से ही पानी सोखती हैं।इसलिए, मिट्टी में लगातार नमी बनाए रखना जरूरी होता है।
प्रकाश संश्लेषण: चावल के पौधे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के लिए ज्यादा पानी का इस्तेमाल करते हैं।इस कारण वाष्पोत्सर्जन के जरिए पत्तियों से पानी निकलता रहता है, जिससे पौधे को ठंडा रखने में मदद मिलती है।
दाना बनना: धान के दाने बनने के समय भी ज्यादा पानी की जरूरत होती है। इस दौरान दाने में स्टार्च जमा होता है, जिससे बनने में अधिक पानी की जरुरत होती इसी कारण से अधिक पानी की आवश्यकता होती है।
क्या बिना सिंचाई के चावल उगाए जा सकते हैं?
कुछ खास परिस्थितियों में, सीमित मात्रा में बारिश वाले क्षेत्रों में बिना सिंचाई के चावल उगाना संभव है। इसे वर्षा आधारित चावल की खेती कहते हैं। लेकिन इसके लिए उपयुक्त जलवायु और कम अवधि वाली धान की किस्मों का चुनाव जरूरी होता है।
हालांकि, भारत के अधिकांश हिस्सों में बारिश का पैटर्न अनिश्चित होता है। सूखे की स्थिति में या कम बारिश होने पर बिना सिंचाई के अच्छी पैदावार लेना मुश्किल है। इसलिए, ज्यादातर भारतीय किसान सिंचाई पर निर्भर करते हैं।
चावल के लिए सबसे अच्छी सिंचाई प्रणाली कौन सी है?
भारत में, चावल की सिंचाई के लिए कई तरह की प्रणालियाँ अपनाई जाती हैं। जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित है:
परंपरागत बाढ़ सिंचाई: इस पारंपरिक तरीके के अनुसार खेतों में नदियों या नहरों से पानी छोड़ा जाता है।हालांकि, इसमे पानी की बर्बादी ज्यादा होती है और समान वितरण में भी दिक्कत आती है।
ट्यूबवेल सिंचाई: आजकल, ज्यादातर किसान भूमिगत जल का उपयोग कर सिंचाई करते हैं। ट्यूबवेल से सिंचाई करने में पानी की बर्बादी कम होती है और खेत में पानी की मात्रा को नियंत्रित करना आसान होता है।
ड्रिप सिंचाई: यह एक आधुनिक सिंचाई प्रणाली है, जिसमें पौधों की जड़ों के पास ही पानी की बूंदें टपकती रहती हैं। इससे पानी की बचत होती है और सीधे जड़ों तक पानी पहुंचने से फसल की पैदावार भी बढ़ती है।
भारत जैसे जलवायु वाले देशों में ड्रिप सिंचाई सबसे फायदेमंद मानी जाती है। यह पानी की बचत करती है साथ ही साथ खेत में खरपतवार को भी कम करती है। हालांकि, ड्रिप सिंचाई सिस्टम को लगाने में शुरुआती लागत थोड़ी ज्यादा हो सकती है।
चावल की फसल के लिए कितनी वर्षा आवश्यक है?
चावल की फसल के लिए आदर्श वर्षा की मात्रा क्षेत्र और धान की किस्म के अनुसार बदलती रहती है। लेकिन आमतौर पर, पूरे चावल उत्पादन चक्र के लिए 1000 से 1500 मिलीमीटर वर्षा उपयुक्त मानी जाती है।
वर्षा का समय भी महत्वपूर्ण होता है। बुवाई से पहले हल्की बारिश बीज के अंकुरण के लिए फायदेमंद होती है।लेकिन पौधे के विकास के दौरान लगातार तेज बारिश नुकसानदेह हो सकती है। वहीं, धान के दाने बनने के समय हल्की-फुल्की बारिश फायदेमंद होती है।
भारत में, मानसून का पैटर्न अनिश्चित होने के कारण सिर्फ बारिश पर निर्भर रहना जोखिम भरा हो सकता है। इसलिए, सिंचाई की सुविधा होना जरूरी है।
जल प्रबंधन के कुछ महत्वपूर्ण सुझाव
अच्छी धान की पैदावार के लिए सिर्फ सिंचाई प्रणाली ही काफी नहीं है। जल प्रबंधन के कुछ महत्वपूर्ण तरीके अपनाकर पानी की बर्बादी को रोका जा सकता है और फसल की उपज बढ़ाई जा सकती है। जल प्रबंधन के कुछ महत्वपूर्ण सुझाव निम्नलिखित है:
खेतों की मेड़बंदी: खेतों के चारों ओर मेड़ (पानी रोकने के लिये बांध) बनाना जरूरी होता है, ताकि सिंचाई का पानी खेत से बहकर बर्बाद ना हो।
लेवलिंग: खेतों को समतल करना चाहिए, जिससे खेत में पानी का एक समान वितरण हो सके।
आवश्यकतानुसार सिंचाई: सिंचाई हमेशा खेत की मिट्टी की नमी को ध्यान में रखकर ही करनी चाहिए। ज्यादा पानी देने से फसल को नुकसान हो सकता है।
पुरानी सिंचाई प्रणालियों का आधुनिकीकरण: परंपरागत बाढ़ सिंचाई प्रणाली की जगह ट्यूबवेल या ड्रिप सिंचाई अपनाने से पानी की बचत होती है।
धान की खेती में सिंचाई और जल प्रबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीय किसानों को धान उगाने के लिए सही सिंचाई प्रणाली का चुनाव करना चाहिए और जल प्रबंधन के तरीकों को अपनाना चाहिए। इससे पानी की बर्बादी रुकेगी और अच्छी पैदावार प्राप्त होगी।
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