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ज्वार की खेती कब और कैसे की जाती है?

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jwar ki kheti kab aur kaise ki jaati hai

ज्वार (Sorghum) भारत की प्रमुख फसलों में से एक है। यह एक बहुपयोगी अनाज है, जिसका उपयोग आटा, चारा, और जैव-ऊर्जा उत्पादन में किया जाता है। यह खासतौर पर उन क्षेत्रों में उगाई जाती है जहां पानी की  कमी होती है और मिट्टी कम उपजाऊ होती है। 


आज हम ज्वार की खेती से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारियां साझा करेंगे, जिससे किसान भाई अपनी पैदावार  को बढ़ा सकें।


ज्वार की खेती के लिए सही मौसम और जलवायु


भारत में ज्वार मुख्यतः तीन मौसमों में उगाई जाती है:


  1. खरीफ ज्वार (जून-जुलाई बोवाई, अक्टूबर-नवंबर कटाई) – यह सबसे अधिक उगाई जाने वाली  ज्वार फसल है।

  2. रबी ज्वार (अक्टूबर-नवंबर बोवाई, फरवरी-मार्च कटाई) – ठंडे मौसम में उगाई जाती है।

  3. जायद ज्वार (फरवरी-मार्च बोवाई, मई-जून कटाई) – गर्मी में उगाई जाती है, लेकिन सिंचाई की  आवश्यकता अधिक होती है।


जलवायु:


  • ज्वार की खेती के लिए 25-35°C तापमान उपयुक्त होता है।

  • यह 40°C तक गर्मी सहन कर सकती है, इसलिए सूखे क्षेत्रों में भी इसकी खेती संभव है।

  • 40-100 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा उपयुक्त होती है।


मिट्टी का चुनाव और खेत की तैयारी


1. मिट्टी का प्रकार:


  • ज्वार बलुई दोमट, काली कपासीय और जलनिकासी वाली भूमि में अच्छी उपज देती है।

  • 6.0 से 7.5 pH मान वाली मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी होती है।


2. खेत की तैयारी:


  • खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें।

  • उसके बाद 2-3 बार देशी हल या रोटावेटर से जुताई करें।

  • पाटा लगाकर मिट्टी को समतल और भुरभुरी बना लें।

  • जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।


ज्वार की उन्नत किस्में


अच्छी पैदावार के लिए उन्नत और प्रमाणित बीजों का चुनाव करना आवश्यक है। कुछ प्रमुख उन्नत किस्में इस प्रकार हैं:


  • खरीफ ज्वार: CSH 16, CSH 14, CSV 17, CSV 20

  • रबी ज्वार: M 35-1, CSV 22, Phule Vasudha (फुले वसुधा)

  • जायद ज्वार: CSH 13, CSH 18


बीज की मात्रा और बोने की विधि


1. बीज की मात्रा:


  • खरीफ ज्वार: 8-10 किलो बीज प्रति हेक्टेयर

  • रबी ज्वार: 12-15 किलो बीज प्रति हेक्टेयर

  • जायद ज्वार: 15-20 किलो बीज प्रति हेक्टेयर


2. बीज उपचार:


  • बुवाई से पहले बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज से उपचारित करें।

  • जैविक खेती करने वाले किसान जैविक ट्राइकोडर्मा या नीम अर्क का उपयोग कर सकते हैं।


3. बुवाई का तरीका:


  • कतारों में बुवाई करने से अच्छी उपज मिलती है।

  • कतार से कतार की दूरी: 45-60 सेंटीमीटर

  • पौधे से पौधे की दूरी: 12-15 सेंटीमीटर

  • बीज की गहराई: 3-5 सेंटीमीटर


ज्वार की खेती में सिंचाई प्रबंधन करना


  • खरीफ ज्वार वर्षा आधारित होती है, लेकिन सूखे की स्थिति में 1-2 सिंचाई आवश्यक होती हैं।

  • रबी और जायद ज्वार में 4-5 सिंचाई आवश्यक होती हैं।

  • फसल की बढ़वार के महत्वपूर्ण चरणों (बुवाई के 25-30 दिन बाद और फूल आने के समय) पर सिंचाई  करना आवश्यक है।


ज्वार की खेती में उर्वरक प्रबंधन


ज्वार की अच्छी उपज के लिए नव्यकोष आर्गेनिक खाद या गोबर की खाद का उपयोग करे।


खरपतवार नियंत्रण


  • ज्वार की फसल में पहले 30-40 दिनों तक खरपतवार नियंत्रण आवश्यक होता है।

  • निंदाई-गुड़ाई करें या प्री-इमर्जेंस खरपतवारनाशक जैसे एट्राजिन (Atrazine) 1.5 किग्रा  प्रति हेक्टेयर  का छिड़काव करें।


रोग और कीट नियंत्रण


1. प्रमुख रोग:


  • तना गलन रोग: कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

  • ज्वार का अंगमारी रोग: जैविक नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा या नीम तेल का छिड़काव करें।


2. प्रमुख कीट:


  • तना छेदक कीट: क्लोरोपाइरीफॉस 2 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

  • फसल के रेशेदार कीट: नीम तेल 5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में छिड़कें।


फसल की कटाई और उपज


  • फसल पकने में 100-120 दिन का समय लेती है।

  • ज्वार की बालियां हल्के पीले रंग की होने पर फसल तैयार मानी जाती है।

  • कटाई के बाद अच्छी तरह धूप में सुखाकर भंडारण करें।

  • उपज:

    • खरीफ ज्वार: 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

    • रबी ज्वार: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर


ज्वार की खेती कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है, इसलिए यह भारत के किसानों के लिए एक लाभकारी  फसल है। सही मौसम, उन्नत किस्में, उचित खाद एवं कीटनाशक प्रबंधन अपनाकर किसान अधिक उत्पादन  कर सकते हैं। ऊपर दी गई जानकारी का उपयोग कर आप अपनी ज्वार की खेती को लाभदायक बना सकते  हैं।

 
 
 

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